Friday, 23 November 2018

राम मंदिर, राजनीति और रामराज्य !

बाबरी मस्जिद विध्वंस को इसी साल 6 दिसंबर को 26 साल होने जा रहे हैं। राम मंदिर आंदोलन से खड़ी हुई बीजेपी मंदिर निर्माण के मुद्दे को समय-समय पर कैश करती रही है। विकास के नाम पर सत्ता में आई बीजेपी 2019 चुनाव से पहले एक बार फिर इस मुद्दे को भुनाने में जुटी है। संसद में कानून बनाकर राम मंदिर निर्माण को लेकर चर्चा तेज है लेकिन सवाल ये कि जब संसद के जरिए ही राम मंदिर निर्माण का मु्द्दा हल होना है तो इसमें मोदी सरकार को साढ़े 4 साल का वक्त क्यों लगा।कानून के जानकारों के मुताबिक क्योंकि मामला अभी कोर्ट में पेंडिंग है ऐसे में अपील पेंडिंग रहने के दौरान विवादित स्थल पर यथास्थिति बहाल रखने के लिए कहा गया है। ऐसे हालात में सरकार आधिकारिक तौर पर दखल नहीं दे सकती। हां, अगर पक्षकार चाहें तो किसी भी स्टेज पर समझौता कर सकते हैं।  केंद्र सराकर 1993 में अयोध्या अधिग्रहण अधिनियम लेकर आई थी जिसके तहत विवादित भूमि और उसके आस-पास की जमीन का अधिग्रहण करते हुए पहले से जमीन विवाद को लेकर दाखिल याचिकाओं को खत्म कर दिया गया था। सरकार के इस अधिनियम को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई थी। जिसके बाद 1994 में अदालत ने इस्माइल फारूखी मामले में आदेश देते हुए तमाम दावेदारी वाली अर्जियों को बहाल कर दिया था और जमीन केंद्र सरकार के पास रखने को कहा था। अदालत ने निर्देश दिया था कि जिसके पक्ष में फैसला आएगा उसे जमीन सौंप दी जाएगी। तो क्या ये मान लिया जाए कि बीजेपी के पास अब एक चारा बचता है कि वो संसद में अध्यादेश लाए भले ही वो कानूनी पेचीदगियों की वजह से गिर जाए। साफ है कि बीजेपी अब अजीब कशमकश में है। हिंदुओं की भावनाओं की बात करने वाली बीजेपी खुलकर कुछ नहीं कह पा रही है।   
राम मंदिर निर्माण को लेकर मोदी सरकार पर दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है सवाल 2019 चुनाव का है, लोकसभा चुनाव से पहले अगर बीजेपी इस मुद्दे का हल निकालने में नाकाम रहती है तो जाहिर है बीजेपी के लिए आगे की राह बहुत कठिन हो जाएगी। 2019 चुनाव में जनता बीजेपी से ये जरूर पूछेगी के पूर्ण बहुमत के बावजूद भी राम मंदिर निर्माण के लिए उसने क्या किया और 2019 में बीजेपी नेता जनता के पास क्या मुंह लेकर जाएंगे आज भी टीवी डिबेट्स में कुछ लोग राम मंदिर मुद्दे का हल बातचीत से हल करने की बात कर रहे हैं जो अब बेमानी सा लगने लगा है।
दोनों पक्षों ने इस मुद्दे का हल अगर मिल बैठकर निकाल भी लिया तो बीजेपी के राम मंदिर आंदोलन का क्या होगा ? राम मंदिर निर्माण के लिए इसे आंदोलन का रूप देने वाली बीजेपी हिंदुओं को अबतक ये बताने में नाकाम रही है कि वो राम मंदिर निर्माण का रास्ता कैसे साफ करेगी और मंदिर कबतक बनकर तैयार होगा ? 

तो क्या ये मान लिया जाए कि बीजेपी को भगवान राम की याद चुनाव से 6 महीने या साल भर पहले ही आती है। विपक्षी पार्टियां भी ये आरोप लगाती रही हैं कि बीजेपी राम मंदिर मुद्दे पर केवल राजनीति करती आई है। ऐसे में जबतक राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ नहीं होता तबतक बीजेपी सरकार क्यों नहीं अपने विकास के एजेंडे से लोगों के दिलों को जीतने का काम करती ? वो ये क्यों नहीं सुनिश्चित करती के हर एक भारतीय के पास रोटी,कपड़ा और मकान  हो। हर एक भारतीय को रोजगार का अधिकार मिले। लाखों पढ़े-लिखे युवक आज बेरोजगार क्यों हैं ? क्या राम मंदिर के साथ रामराज्य की जरूरत नहीं है ? क्या रामराज्य की बात नहीं होनी चाहिए जहां एकता, समानता और न्याय हो, जहां गरीबी और बुखमरी से पूरी तरह निजात हो, जहां अपराध मुक्त समाज हो। राम मंदिर मुद्दे पर राजनीति करने के बजाय आज भगवान राम के आदर्शों की बात कितने लोग करते हैं उनके बताए हुए वचनों पर कितने लोग अमल करते हैं ? 1992 में बाबरी विध्वंस के दौरान जिस तरह से दंगे भड़के और सैकड़ों लोगों की जान गई उसे कैसे जायज ठहराया जा सकता है। उनके परिवारवालों को आजतक इंसाफ नहीं मिला। वो नेता आज भी खुले घूम रहे हैं जिन्हों 1992 में दंगे भड़काए और अपना सियासी करियर चमकाने के लिए हिंदू-मुसलमानों को लड़वा दिया क्या आज भी वैसे ही हालात पैदा करने की कोशिशें हो रही हैं। कुछ लोग 1990 में कारसेवकों पर गोली चलाने को लेकर भी सवाल उठाते हैं जाहिर है तब जो हुआ वो सरकार के कहने पर हुआ कानून,व्यवस्था एक मुद्दा हो सकता है लेकिन उस दौरान कोई भी कारसेवक दूसरे पक्ष की गोली का शिकार नहीं हुआ था इसलिए 1992 की घटना से इसकी तुलना करना बेमानी है।

2019 चुनाव से ठीक पहले मंदिर निर्माण के नाम पर देश में एक बार फिर जिस तरह का माहौल बनाने की कोशिशें हो रहीं हैं उसे समझना कोई बहुत मुश्किल नहीं है।अगर अभी बीजेपी की कोशिशों से राम मंदिर का रास्ता साफ हो भी जाता है तो क्या 2019 में इसी पैमाने पर हिंदू मतदाता बीजेपी को वोट करेंगे।क्या बेरोजगारी,भ्रष्टाचार,आतंकवाद,नक्सलवाद जैसे मुद्दे मतदादा के लिए मुद्दे नहीं रह जाएंगे। पीएम मोदी ने 2014 से पहले जो बड़े-बड़े वादे किए थे उन वादों का क्या होगा।भगवान राम ने चाहा तो राम मंदिर जरूर बनेगा और जो लोग इसे लेकर केवल राजनीति कर रहे हैं उनकी अंत में हार होगी मुझे उम्मीद है रामराज्य जरूर आएगा।    
  


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