Wednesday, 14 November 2018

सऊदी का ये घिनौना चेहरा देख लें दुनिया के मुसलमान !


खुद को मुस्लिम दुनिया का नेता बताने वाले सऊदी अरब की पोल एक बार फिर खुल गई है। अमेरिका से सऊदी अरब की नजदीकियां किसी से छिपी नहीं हैं और इन नजदीकियों की एक वजह सऊदी अरब का ईरान से नफरत भरा रवैया रहा है जो वक्त-वक्त पर खुलकर सामने आया है। ये किसी से छिपा नहीं है कि अमेरिका और ईरान के बीच हमेशा से तल्ख रिश्ते रहे हैं और कुछ ऐसा ही सऊदी अरब और ईरान के बीच रहा है। ऐसा कई बार हुआ जब अपने को मुस्लिम राष्ट्र बताना वाला सऊदी अरब कई बार खुद मुस्लिम देश ईरान की जड़ें काटते हुए बेपर्दा हो चुका है।

हाल में सामने आई अमेरिकी जस्टिस विभाग की रिपोर्ट में पता चला है कि ईरान के परमाणु क़रार के बाद सऊदी अरब ने लॉबीइंग के ख़र्च में बहुत ज़्यादा इज़ाफ़ा किया है। साल 2014 में उसने इस मद में छह मिलियन डॉलर ख़र्च किए थे जबकि उसका यही ख़र्च साल 2015 में लगभग 15 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया था।

दैनिक क्रिश्चियन साइंस मॉनीटर की साल 2016 की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ साल 2015 में सऊदी अरब ने वॉशिंगटन में लॉबीइंग करने वालों को जो रक़म दी उसका ज्यादातर हिस्सा सिर्फ एक लक्ष्य पर ख़र्च किया गया और वह लक्ष्य था ईरान के खिलाफ सऊदी अरब के विचारों का प्रचार-प्रसार। दस्तावेज़ से ये भी पता चलता है कि एमएसएल ग्रुप नाम की एक कंपनी ने परमाणु क़रार के बाद तीन साल में सऊदी अरब से छह मिलियन डॉलर हासिल किया और इसके बदले क्षेत्र में ईरान की गतिविधियों के खिलाफ सामग्री तैयार करके इसे नियमित रूप से अमरीकी नेताओं को बांटा।

एक हफ्ते पहले ही अमेरिका ने ईरान पर फिर से कड़े प्रतिबंध लागू किए हैं।  ईरान के साथ परमाणु समझौते में शामिल बाकी पक्ष अमेरिका के प्रतिबंधों का विरोध कर रहे हैं। विरोध करने वाले ये देश ब्रिटेन, फ्रांस, चीन और रूस हैं। संयुक्त राष्ट्र निरीक्षकों का भी मानना है कि ईरान समझौते की शर्तों पर बना हुआ है। इस मुद्दे पर सऊदी अरब अमेरिका का एकमात्र समर्थक देश है। अमेरिका ने 2015 में ईरान से प्रतिबंध हटाए थे लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप ने दोबारा प्रतिबंध लागू कर दिए हैं। अमेरिका ने ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों से 8 देशों को अस्थाई छूट दी है। इन देशों में भारत भी शामिल है। भारत के अलावा चीन, दक्षिण कोरिया, जापान, इटली, ग्रीस, ताइवान और तुर्की को इन प्रतिबंधों से छूट दी गई है। बता दें कि छूट पाने वाले ये 8 देश ईरान के तेल निर्यात का कुल 75 फीसदी खपत करते हैं। 

पिछले करीब 15 सालों में सऊदी अरब और ईरान के बीच दूरियां और बढ़ी हैं। सीरिया में ईरान और रूस ने राष्ट्रपति बशर-अल-असद को समर्थन दिया जिससे सऊदी के समर्थन वाले विद्रोही गुटों को हटाने में कामयाबी मिली।उस वक्त ईरान, सीरिया के साथ खड़ा था जब सीरिया के शहरों से ISIS के आतंकियों को खदेड़ा जा रहा था लेकिन उस समय भी सऊदी अरब का दोहरा चेहरा दुनिया ने देखा था। सऊदी अरब ने आतंकवाद से लड़ने के नाम पर 24 मुस्लिम देशों का एक समूह बनाया था हैरानी की बात ये थी के उस समूह में ईरान का ही नाम नहीं था।
    ईरान और सऊदी अरब की सैन्य शक्ति पर नजर डालें तो ईरान का पलड़ा भारी है। ईरान के पास पांच लाख 63 हज़ार सशस्त्र बल हैं जबकि सऊदी के पास महज दो लाख 51 हज़ार 500  सशस्त्र बल हैंईरान के पास एक हज़ार 513 युद्धक टैंक हैं जबकि सऊदी के पास 900ईरान के पास 6 हज़ार 798 तोपख़ाने हैं जबकि सऊदी के पास महज 761ईरान के पास 336 लड़ाकू विमान हैं, हालांकि ये पुराने हैं और इनकी मरम्मत की ज़रूरत हैसऊदी के पास 338 आधुनिक लड़ाकू विमान हैं।ईरान के पास 194 गश्ती नाव हैं और सऊदी के पास 11 ही हैं। ईरान के पास 21 युद्धपोत हैं जबकि सऊदी के पास एक भी नहीं है।

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