गुम हुई मुद्दे की बात
देश में आम चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं, सियासी पार्टियां एक दूसरे पर निशाना साधने का मौक़ा नहीं छोड़ रहीं। सोनिया गांधी अपने भाषण में बीजेपी पर ज़हर की खेती करने का आरोप लगाती हैं तो नरेन्द्र मोदी जवाबी हमला करते हुए कांग्रेस को ही सबसे ज़हरीला और उसपर ज़हर बोने का आरोप लगा रहे हैं।
दरअसल हक़ीकत देखी जाए तो चुनावी
रैलियों में अवाम के मुद्दों को नज़रअंदाज़ करके पार्टियां एक दूसरे पर निशाने
साधने में मसरूफ दिखाई दे रही हैं। एक दूसरे को घेरने का जो नज़रिया है वो सियासी
दलों को जनता के असल मुद्दों से दूर ले जा रहा है। असल मुद्दे की बात गुम होती नज़र
आ रही है। देश की सियासत में ये परम्परा अब आम होती जा रही है। जिसका ताज़ा उदाहरण
कर्नाटक के गुलबर्गा में सोनिया गांधी
और मेरठ में नरेन्द्र मोदी की शंखनाद रैली में देखने को मिला।
मोदी ने अपनी रैली में कांग्रेस
समेत यूपी की अखिलेश सरकार पर निशाना तो साधा लेकिन उन्हें शायद इस बात का ख्याल
नहीं रहा कि वो मुज़फ्फरनगर दंगों की निंदा करते और दोषियों को ठोस सज़ा दिए जाने
की मांग करते। शायद उससे लोगों के बीच एक पॉज़ेटिव संदेश जाता। हालांकि जिन बीजेपी नेताओं पर
मुज़फ्फरनगर में ज़हर घोलने के आरोप लगे थे और जो कुछ दिन जेल में भी रहे थे
उन्हें मोदी एक सभा में खुद माला पहना चुके हैं।
नरेन्द्र मोदी को इतना बखूबी
मालूम है कि 2014 के रण में अल्पसंख्यकों के बिना भी जीत के आंकड़े को वो छू सकते
हैं। शायद इसीलिए वो अपने भाषणों में अक्सर दलितों, किसान बहु-बेटियां की बात तो
करते हैं लेकिन उन अल्पसंख्यकों की बात नहीं करते जिनके विकास के बिना देश का
विकास अधूरा है।
मेरठ में आज़ादी के बाद से अबतक
सैकड़ों दंगे हुए, हज़ारों लोग मरे, नफरत के बीज बोए गये, सत्ता में कई पार्टियां
आईं और गईं लेकिन किसी ने भी वहां की अवाम में ये यकीन पैदा करने की कोशिश नहीं की
जिससे वो खुद को सुरक्षित समझें। आखिर ऐसा ताना-बाना, सरकार और नेता कहां से आएंगे
जो जनता को सवाल खड़े करने का मौक़ा न दे। अगर विभिन्न पार्टी शासित प्रदेशों में
वहां की सरकारें काम करें और किसी को भी उंगाली उठाने का मौक़ा न दें तो ये एक
दूसरे को कटघरे में खड़ा करने का चलन भी शायद खत्म हो जाए।
मोदी ने मेरठ की रैली में ये ऐलान
तो कर दिया की अगर वो देश की सत्ता में आए तो यूपी को दंगा-मुक्त प्रदेश बनाएंगे।
लेकिन इसकी शुरूआत अगर वो मज़फ्फरनगर दंगों के दोषियों को सज़ा दिए जाने की मांग
के साथ करते तो अच्छा होता। ज़ाहिर है सियासत में भी सभी के अपने-अपने तौर-तरीक़े
हैं लेकिन असल मुद्दे की बात कम ही नेता करते हैं और जो करता है अवाम उसे ही मौक़ा
भी देती है। फिलहाल इस चुनावी मौसम में सियासी पार्टियां रैलियां कर शक्तिप्रदर्शन
दिखाती रहेंगी, लेकिन जनता के पास लोकतंत्र में सबसे बड़ी ताक़त है जिसका उसे सही
इस्तेमाल करने की ज़रूरत है।
No comments :
Post a Comment