Monday, 25 March 2013

                इराक जंग के 10 साल और सुलगते सवाल
 फोटा-साभार (ये तस्वीर काफी कुछ बयां कर रही है)
राक जंग की 10वीं बरसी के मौके पर दुनियाभर में इस बात को लेकर फिर से बहस छिड़ गई है कि क्या यह जंग ज़रूरी थी। जैविक हथियारों के प्रोपोगेंडा से शुरू किए गए अमेरिका की इस जंग में किसका लाभ और किसका नुकसान हुआ। अमेरिका ने भले ही इराक में घुसकर उसके खिलाफ जंग कर अपने मंसूबों पर कामयाबी हासिल कर ली हो। भले ही उसने सद्दाम को फांसी पर लटका कर चैन की सांस ली हो। लेकिन अमेरिकी नागरिकों के बीच किए गए गैलप सर्वे में 53 फीसदी लोगों का मानना है कि इराक पर जंग थोपना अमेरिका की सबसे बड़ी भूल थी। मीडिया में आई रिपोर्टों पर अगर गौर करें तो खुद अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा इस जंग के फैसले को सही नहीं मानते हैं। उन्हें यह समझदारी भरा फैसला नहीं लगता। ऐसे में इस जंग का शिकार हुए लोगों के घाव 10 साल बाद भी कितने हरे होंगे इसका अंदाज़ा बखूबी लगाया जा सकता है। इन 10 सालों के दरम्यान सिर्फ एक देश तबाह हुआ बल्कि लाखों जिंदगियां तबाह हो गईं यों को शारीरिक और मानसिक तौर पर ऐसे ख्म मिले जो आज तक भर नहीं पाए हैं। जंग में जान-माल का कितना नुकसान हुआ, इस बारे में अलग-अलग अंदाजा लगाया जाता रहा है। अमेरिका और सहयोगी देशों ने अफवाहों के आधार पर इराक को बर्बादी की ओर ढकेल दिया। वैश्विक आलोचना और संयुक्त राष्ट्र के मना करने के बाद भी वहां मार्च, 2003 में दो लाख सैनिक झोंक दिए गए और बड़े पैमाने पर हवाई हमले किए गए।

     एक स्टडी पर अगर नज़र डालें तो  इराक जंग में करीब डेढ़ लाख लोगों के मरने और खरबों रुपये के नुकसान की बात कही गई है। जिनमें 4,475 अमेरिकी सैनिकों ने जान गंवाई थी, जबकि 32 हजार से ज्यादा सैनिक घायल हुए थे। अमेरिका को इस जंग में 810 अरब डॉलर यानी  करीब  44 लाख करोड़ रुपये  का नुकसान हुआ था और एक  लाख  16 हजार से ज्यादा  इराकी  नागरिक मारे गए  थे। इराक युद्ध से सिर्फ लोग ही नहीं मरे बल्कि यों जिंदगी हमेशा के लिए नरक बन गई। रिपोर्ट में कहा गया कि इस युद्ध ने कई इराकी नागरिकों को बुरी तरह घायल कर दिया और कई बीमार हो गए। इराक की स्वास्थ्य सेवा को बहुत नुकसान पहुंचा और 50 लाख से ज्यादा लोग पलायन कर गए।  रिसर्च में ये भी कहा गया है कि अमेरिका ने युद्ध में जो पैसे झोकें उसका इस्तेमाल स्वास्थ्य सुधारने संबंधी घरेलू और वैश्विक कई कार्यक्रमों में किया जा सकता था। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति ने अपनी करनी की माफी भी मांगी। इस जंग का आगाज़ जहां अमेरिका द्धारा चलाई गई पहली गोली से हुआ तो इसका अंजाम भी आखिर में एक इराकी पत्रकार द्वारा बुश पर जूता मारने से हुआ। बड़ा सवाल अभी भी बना हुआ है कि क्या अमेरिकी आक्रमण के 10 साल बाद इराक की आम जनता सामान्य जीवन की ओर लौट पाई है ?

     इराक युद्ध के आठ साल बाद 2011 में अमेरिका ने इराक को छोड़ने की शुरुआत की थी और रिकॉर्ड के मुताबिक़ अब उसकी सेना इराक़ छोड़ चुकी है लेकिन अब भी इराक़ में हिंसा जारी है और हर महीने औसतन 300 लोग मारे जाते हैं। इराक़ को आत्मघाती धमाकों ने पिछले दशक में एक नई पहचान दी और साथ में आतंकियों को एक ऐसा साबित हुआ हथियार जो दहशत में कई गुणा इज़ाफ़ा करता है। जिस मुल्क में पहले शिया और सुन्नी शांति के माहौल में रहते आए हैं, वहां यह दोनों समुदाय एक दूसरे को शक की निगाह से देखते हैं। शिया और सुन्नी इलाक़े पहले भी थे लेकिन अब उन्हें इन्हीं नाम से पहचाना जाता है। इराक़ का समाज टूट चुका है। इराक जंग इन इराक़ियों के लिए ऐसी नासूर साबित हुई कि आज इराक में बच्चे कैंसर दूसरी बीमारियों से ग्रस्त हैं। कई लाख महिलाएं विधवा हैं तो कई लाख बच्चे यतीम हैं। लोगों के पास रोज़गार नहीं है, जिनके पास है भी वो खुश नहीं हैं क्योंकि देश के हालात अबतक कुछ ऐसे हैं जिनके सामान्य होने में शायद काफी लंबा अरसा लगेगा। जंग से पहले दुनियाभर से लाखों शिया श्रद्धालु इराक आते थे। इन दस सालों में इसमें भी बेइंतेहा कमी आई है। वहां के बाशिंदों को सीधा नफा पहुंचाती आई ट्रेवल एंड टूरिज़म इंडस्ट्री आज खात्मे के दहाने पर खड़ी है। भले ही अमेरिकी फौज वहां से 2011 में वापस आ गई हो लेकिन तेल का ज़खीरा अब भी अमेरिका के कब्ज़े में है। इन सुलगते सवालों के बीच एक बड़ा सवाल अब भी बना हुआ है कि क्या बुश के इराकियों से माफी मांगने पर उन्हें माफ कर दिया गया है। क्या सद्दाम हुसैन को फांसी पर चढ़ाना ही अमेरिका का असल मक़सद था या फिर दुनिया को अपनी ताक़त का प्रदर्शन दिखाना उद्देश्य था। ऐसे में एक उससे भी बड़ा सवाल ये है कि अमेरिका कहीं किसी दूसरे मुल्क के साथ जंग की तैयारी तो नहीं कर रहा क्योंकि इराक़ पर हुए हमले के बाद अब अमेरिका की हर जंग को संदेह की नज़र से ही देखा जाएगा। लीबिया और सीरिया में विद्रोहियों को अमेरिकी मदद से दुनिया परिचित है, अब लोकतंत्र, आतंकवाद और भारी तबाही वाले हथियारों की आड़ में होने वाली जंग का पूरी दुनिया में विरोध हो रहा है।